- लगातार दूसरी बार ईद के खुशियों में कोरोना का पहरा
जहाँजेब रजी के कलम से
मुस्लिम धर्मावलंबियों की सबसे अहम और पवित्र त्यौहार माह ए रमजान के बाद तोहफे के तौर पर मनाई जाने वाली ईद पर इस वर्ष भी कोरोना का संकट का असर है। राज्य में लगे स्वास्थ्य सुरक्षा सफ्ताह के कारण एक दूसरे से गले नही मिल पाएंगे। त्यौहार को सादगी के साथ मनाया जाएगा।
लगातार दूसरी बार कोरोना के कड़े पहरे के कारण त्यौहार में इस तरह का रुख अपनाना पड़ रहा हैं। सब लोग घरों में ही नमाज को भी अदा करेंगे, इसके लिए दारुल उलूम देवबंद के द्वारा भी अपील की गई हैं कि सरकार के गाइडलाइंस के अनुसार सभी लोग अपने अपने घरों में ही ईद की नमाज अदा करेंगे।
घर पर रहकर ही लोग लजीज व्यंजन का लुत्फ उठाएंगे। शहरी क्षेत्र के साथ साथ ग्रामीण क्षेत्रो के भी दुकानें बंद है ऐसे में लोग भी इस संकट की घड़ी में नए कपड़ो के तामझाम से बचना चाहते हैं। लेकिन जब जायके की बात हो तो ईद में सेवई भला किसे पसन्द नहीं, कानपुर, कोलकाता, बंगाल एवं राजस्थान से सेवई नही आ रही है, तो ऐसे में लोग घरों में खुद की बनाई हुई सेवई का लुत्फ उठाएंगे।
दरअसल पिछले करीब 30 साल पहले सेवई घरों में ही बनाई जाती थी। 10 रमजान के बाद से ही घरों में सेवई बनाने का काम शुरू हो जाया करता था। छोटी सी मशीन को घर के चारपाई(खाट) या चौकी में मशीन कसी जाती थी, फिर महीन व मोटे चलने का इस्तेमाल कर मैदा या आटा की सेवई बनाई जाती थी।
इससे पकाए जाने वाले सेवई और लच्छा बनाया जाता था फिर उसे धूप में सुखाया जाता था। कोरोना वायरस के प्रकोप से बचाव के लिए लगे स्वास्थ्य सुरक्षा सफ्ताह में लोगों ने उस पुरानी मशीन को फिर से बाहर निकाल लिया है। इस बार लोग मशीन से अपने घरों में सेवई बना रहे हैं।
क्या है ईद - उल - फितर की अहमियत:
ईद-उल-फितर भूख-प्यास सहन करके एक महीने तक सिर्फ खुदा को याद करने वाले रोजेदारों को अल्लाह का इनाम है। सेवइयां में लिपटी मोहब्बत की मिठास इस त्योहार की खूबी है। मुसलमानों का सबसे बड़ा त्योहार कहा जाने वाला यह पर्व न सिर्फ हमारे समाज को जोड़ने का मजबूत सूत्र है, बल्कि यह इस्लाम के प्रेम और सौहार्दभरे संदेश को भी पुरअसर ढंग से फैलाता है।
मीठी ईद भी कहा जाने वाला यह पर्व खासतौर पर भारतीय समाज के ताने-बाने और उसकी भाईचारे की सदियों पुरानी परंपरा का वाहक है। इस दिन विभिन्न धर्मों के लोग गिले-शिकवे भुलाकर एक-दूसरे से गले मिलते हैं और सेवइयां अमूमन उनकी तल्खी की कड़वाहट को मिठास में बदल देती है। ईद-उल-फितर एक रूहानी महीने में कड़ी आजमाइश के बाद रोजेदार को अल्लाह की तरफ से मिलने वाला रूहानी इनाम है।
ईद समाजी तालमेल और मोहब्बत का मजबूत धागा है, यह त्योहार इस्लाम धर्म की परंपराओं का आईना है। एक रोजेदार के लिए इसकी अहमियत का अंदाजा अल्लाह के प्रति उसकी कृतज्ञता से लगाया जा सकता है। दुनिया में चांद देखकर रोजा रहने और चांद देखकर ईद मनाने की पुरानी परंपरा है और आज के हाईटेक युग में तमाम बहस-मुबाहिसे के बावजूद यह रिवाज कायम है।
व्यापक रूप से देखा जाए तो रमजान और उसके बाद ईद व्यक्ति को एक इंसान के रूप में सामाजिक जिम्मेदारियों को अनिवार्य रूप से निभाने का दायित्व भी सौंपती है। रमजान में हर सक्षम मुसलमान को अपनी कुल संपत्ति के ढाई प्रतिशत हिस्से के बराबर की रकम निकालकर उसे गरीबों में बांटना होता है। इससे समाज के प्रति उसकी जिम्मेदारी का निर्वहन तो होता ही है।
साथ ही गरीब रोजेदार भी अल्लाह के इनामरूपी त्योहार को मना पाते हैं। व्यापक रूप से देखें तो ईद की वजह से समाज के लगभग हर वर्ग को किसी न किसी तरह से फायदा होता है। चाहे वह वित्तीय लाभ हो या फिर सामाजिक फायदा हो।


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