डेस्क न्यूज़: देश में बढ़ती मुस्लिम विरोधी भाषण पर शाहीन एजुकेशनल एंड रिसर्च फाउंडेशन ( एसईआरएफ ) ने भारतीय मुसलमानों की सुरक्षा और आत्मविश्वास को बनाये रखने के लिए न्यापालिका की जिम्मेदारी को अहम बताया। देश की शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति लगातार बद से बदतर होती जा रही है जबकि मुस्लिम विरोधी भाषण और गुंडागर्दी बढ़ती जा रही है।
एसईआरएफ के रिसर्च स्कॉलर व लेखक इंजीनियर अफ्फान नोमानी ने एक अंग्रेजी अख़बार के सम्पादकीय में अपने लिखे लेख का हवाला देते हुवे कहा की हिंदू चरमपंथियों ने 24 महीनों में चार राज्यों में मुसलमानों के नरसंहार ईसाइयों पर हमले और सरकार के खिलाफ विद्रोह का आह्वान करते हुए 12 कार्यक्रम आयोजित किए हैं। फिर भी भारत के मानयीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खामोश हैं।
देश के विभिन्न संगठन व प्रभावशाली स्कॉलर, वकील और पत्रकार व लेखकों के समूह के आवाज उठाने और सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन दायर के बाद एक दो सांप्रदायिकता फ़ैलाने वाले लोगो को गिरप्तार किया गया, लेकिन बड़ा सवाल यह है की धर्म के नाम पर गुण्डागर्दी और मुस्लिम विरोधी भाषण कब तक?
ऐसे में नागरिकों के लिए न्यायपालिका ही आखिरी उम्मीद है। न्यायपालिका को संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखना चाहिए और न्यायपालिका को अल्पसंख्यकों के खिलाफ अभद्र भाषा को दंडित करने के लिए कदम उठाना चाहिए ।
नागरिकों के अधिकारों के रक्षक के रूप में अपनी भूमिका पर जोर देना चाहिए। न्यायपालिका को मुसलमानों को आश्वस्त करना चाहिए कि उन्हें डरने की कोई बात नहीं है और किसी को भी उन्हें नुकसान पहुंचाने के लिए कानून अपने हाथ में नहीं लेने दिया जाएगा। भारतीय मुसलमानों के आत्मविश्वास को बनाए रखने के लिए मुस्लिम विरोधी भाषण पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।
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