जहां छठ मइया की ममता मिली, वहां धर्म की दीवारें पिघल गईं - बलबड्डा का मुस्लिम परिवार बना मिसाल

 

जानकारी देते बाखर अली


●छठ पूजा में अटूट आस्था: गोड्डा के बलबड्डा गांव का मुस्लिम परिवार बना सौहार्द की मिसाल

●जहां मइया की ममता मिली, वहां धर्म की दीवारें पिघल गईं - बलबड्डा का मुस्लिम परिवार बना मिसाल

●मइया की कृपा से शुरू हुई कहानी, अब पूरे गांव में गूंजती है सौहार्द की मिसाल

●एक मन्नत ने बदल दी ज़िंदगी, छठ पूजा से जुड़ा मुस्लिम परिवार बना प्रेरणा

●भक्ति ऐसी कि सीमाएं मिट गईं- बलबड्डा में छठ मनाता है मुस्लिम परिवार

गोड्डा:आस्था,भक्ति और समर्पण का महापर्व छठ पूरे जोश और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है। हर घाट पर भक्ति का सागर उमड़ा है, तो हर घर में छठ मइया की आराधना की गूंज सुनाई दे रही है। इसी बीच गोड्डा जिले के बलबड्डा गांव से एक ऐसी मिसाल सामने आई है, जो न सिर्फ आस्था बल्कि धर्म से ऊपर इंसानियत और भाईचारे का जीवंत प्रतीक बन चुकी है।करीब पांच सौ परिवारों वाले इस गांव में लगभग पचास मुस्लिम परिवार रहते हैं। इन्हीं में से एक हैं मोहम्मद बाखर अली, जो पेशे से दर्जी हैं। बाखर अली का परिवार पिछले कई वर्षों से पूरे श्रद्धा भाव से छठ पर्व मनाता आ रहा है।बाखर अली बताते हैं कि कई साल पहले उनके बच्चे की तबीयत गंभीर रूप से बिगड़ गई थी।

 उन्होंने छठ मइया से मन्नत मांगी कि अगर बच्चा स्वस्थ हो गया तो वे इस पर्व को पूरी निष्ठा से मनाएंगे।मइया ने हमारी झोली खुशियों से भर दी। बच्चा ठीक हुआ और तब से हमारे घर में छठ की परंपरा चली आ रही है,वे गर्व से कहते हैं।उनकी पत्नी ने लगातार चार वर्षों तक छठ व्रत रखा पूरे विधि-विधान से व्रत रखकर तालाब में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित किया।

भले अब स्वास्थ्य कारणों से वे व्रत नहीं रख पा रहे हों, लेकिन घर की पवित्रता और परंपरा आज भी जस की तस है। दुर्गा पूजा के बाद से छठ तक मांस-मछली पूरी तरह वर्जित रहता है, घर की साफ-सफाई और पूजा-पाठ नियमपूर्वक होती है, और छठ समाप्त होने के बाद पूरा परिवार प्रसाद ग्रहण करता है।बलबड्डा गांव का यह परिवार वर्षों से आपसी सौहार्द, एकता और अटूट आस्था का प्रतीक बनकर न केवल अपने गांव बल्कि पूरे जिले के लिए प्रेरणा बन गया है।

-जावेद रजा,ब्यूरो रिपोर्ट,उजागर मीडिया

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