डीजी साथ कार्यक्रम : ऑनलाइन शिक्षा की ओर बढ़ते कदम



असलम आजाद शम्सी : कोरोना संक्रमण के इस काल में देश भर के सभी शिक्षण संस्थान पूरी तरह से बंद हैं एवं लॉक डाउन की अवधि के बाद अब अनलॉक की प्रक्रिया चल रही है। हालांकि देश और राज्य में अभी कोरोणा संक्रमितों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि निरंतर जारी है जो देश के लिए अत्यंत चिंतनीय विषय है।

 यूं तो कोरोना काल की मार का दुष्प्रभाव देश के हर क्षेत्र पर पड़ा है और हर छोटा बड़ा संगठन, कल कारखाने एवं उद्योग धंधे को बंद करना पड़ा जिसके पश्चात उससे जुड़े कामगार एवं दिहाड़ी मजदूर अपने रोजगार से हाथ धो बैठे हैं । लोगों की आमदनी या तो पूरी तरह बंद हो गई या तो उसमें अप्रतियाशित गिरावट आईजिसका दुष्परिणाम भी यह हुआ कि देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी और जीडीपी ने एक गहरी डुबकी लगाई।
देश के सभी क्षेत्रों पर इसका गहरा दुष्प्रभाव पड़ा।

 शिक्षा जगत भी इससे अछूता ना रहा बल्कि अगर यह कहा जाए कि कोविड 19 एवं लॉक डाउन से शिक्षा विभाग सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है तो गलत ना होगा। लॉकडाउन की घोषणा हुई और पूरे देश की तरह झारखंड राज्य में भी सभी प्रकार के निजी एवं सरकारी विद्यालयों को बंद करना पड़ा। देश में लॉक डॉन की अवधि बढ़ती गई और अभिभावकों एवं बच्चों के साथ-साथ शिक्षकों की चिंता भी। चिंता इस बात की कि जिन बच्चों के ऊपर शिक्षक अभी तक मेहनत कर रहे थे उन पर अपनी उर्जा एवं विवेक खर्च कर रहे थे अपना बहुमूल्य समय बच्चों को दे रहे थे और जिनकी बेहतर रिजल्ट और भविष्य की कामना कर रहे थे उस पर ब्रेक लग गया ।

इन्हीं चिंताओं को ध्यान में रखते हुए झारखंड सरकार ने डीजी- साथ कार्यक्रम की शुरुआत की है। सरकार ने स्कूल बंद किए जाने के बाद राज्य के लगभग4200000 से अधिक बच्चों की पढ़ाई जारी रखने के लिए यह सराहनीय कदम उठाया है। ज्ञात हो कि डीजी- साथ कार्यक्रम को अब 22 हफ्ते पूरे हो चुके हैं।

डीजी- साथ एक ऐसा कार्यक्रम है जिसमें जिसके तहत राज्य के 12वीं तक के छात्र-छात्राओं तक मोबाइल द्वारा व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से ऑनलाइन शिक्षण सामग्री उपलब्ध कराई जा रही है। ऑनलाइन शिक्षण प्रोग्राम का यह माध्यम अभी तक काफी प्रभावी साबित हो रहा है एवं इसे कड़ाई से लागू करने पर जोर दिया जा रहा है। पूर्व परियोजना निदेशक उमाशंकर सिंह ने इसे दीर्घकालीन योजना बताते हुए इसे कोरोना  काल के पश्चात भी निरंतर जारी रखने की बात कही थी। ज्ञात हो कि डीजी- साथ के माध्यम से राज्य के लगभग 1300000 छात्र-छात्राएं ग्रुप में जुड़े हैं जिन तक रोज प्रातः 10:00 बजे तक e-content पहुंच रहा है। राज्य के सभी बीआरपी,सीआरपी, प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी, प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारी एवं विद्यालय प्रधान को शत प्रतिशत बच्चों को जोड़ने हेतु आवशयक दिशा निर्देश जारी कर दिया गया है।

झारखंड सरकार राज्य के छात्र-छात्राओं के प्रति बेहद गंभीर एवं सक्रिय है तथा उनके शिक्षा व्यवस्था को लेकर पूरी तरह मुस्तैद भी दिखाई दे रही है । सरकार बच्चों की पढ़ाई बाधित ना हो इसके लिए हर संभव प्रयास भी कर रही है । मालूम हो कि कोरोना काल के मध्य में ही सभी बच्चों को पुस्तक का वितरण किया जा चुका है । डीजी- साथ कार्यक्रम अभी तक सफलतापूर्वक चल रहा है एवं यह कार्यक्रम अत्यंत लाभकारी एवं प्रभावी साबित हो रहा है। डीजी साथ के माध्यम से उपलब्ध कराए जा रहे डिजिटल सामग्री को राज्य के विद्वान एवं माहिर विशय विशेषज्ञों द्वारा तैयार किया जा रहा है। विषय विशेषज्ञ डिजिटल कंटेंट को चाइल्ड सेंटर बनाते हुए इस बात का भी ध्यान रख रहे हैं कि इस कंटेंट से बच्चों में चिड़चिड़ापन एवं उक्ताहट तथा ऊबने एवं बोर होने जैसी समस्या ना आए ।

इस बात पर भी  बल दिया गया है कि कंटेंट बाल केंद्रित होने के साथ-साथ दिलचस्प एवं जिज्ञासा से परिपूर्ण हो। कार्यक्रम के तहत e-content के माध्यम से सोमवार से शुक्रवार तक पढ़ाई कराई जा रही है जबकि सप्ताह के अंत में अर्थात शनिवार को एक हफ्ते की पुनरावृत्ति एवं क्विज प्रतियोगिता भी कराई जा रही है। डिजी- साथ के माध्यम से लिखित कंटेंट के साथ-साथ ऑडियो वीडियो के माध्यम से भी सभी कक्षा के बच्चों तक अध्याय वार सामग्री उपलब्ध कराई जा रही है।

कार्यक्रम की विशेषताएं

  • बाल केंद्रित शिक्षण सामग्री।
  • साप्ताहिक क्विज प्रतियोगिता एवं पुनरावृति ।
  • बच्चों की रुचि कौशल एवं सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया अध्ययन सामग्री ।
  • अधिक से अधिक बच्चों तक पहुंच बनाने के लिए निरंतर प्रयासरत।
  • बलोपयोगी एवं बेहतर शिक्षण सामग्री की उपलब्धता।
  • प्रतिदिन फीडबैक फॉर्म भरकर बच्चों की सक्रियता एवं सामग्री की उपलब्धता की जानकारी प्राप्त करना।
  • बच्चों में कुशलता, रचनात्मकता एवं सृजनात्मकता के विकास पर बल ।
  • कक्षा वार एवं विषय वार व्हाट्सएप ग्रुप का निर्माण।
  • शिक्षकों तथा छात्र-छात्राओं को बेहतर प्रदर्शन हेतु प्रशस्ति पत्र।
  • वर्चुअल माध्यम से शिक्षकों को प्रशिक्षण।


अगर हम मोटे तौर पर देखें तो झारखंड सरकार के द्वारा चलाया जा रहा यह ऑनलाइन शिक्षण प्रोग्राम काफी हद तक सफल हो रहा है। हालांकि यह बात भी दिन के उजाले की तरह सत्य है कि इससे ना तो शत-प्रतिशत बच्चों तक पहुंच बना सकते हैं और ना ही हम उन्हें वह शिक्षा और वातावरण प्रदान कर सकते हैं जो कि विद्यालय में दिया जा सकता है। अभी तक यह प्रोजेक्ट जितना सफल रहा है उसे देखते हुए तो यही प्रतीत हो रहा है कि भविष्य में भी राज्य के बच्चे इससे लाभान्वित होते रहेंगे क्योंकि यह कार्यक्रम काफी प्रभावी साबित हो रहा है । एक ओर जहां यह कार्यक्रम शिक्षकों को अपनी कुशलता एवं तकनीक का प्रदर्शन करने का अवसर एवं प्लेटफॉर्म प्रदान कर रहा है वहीं दूसरी ओर बच्चों में भी रचनात्मकता का विकास हो रहा है। चूंकि अब हमारा लगभग हर प्रकार का कार्यालयिय कार्य भी ऑनलाइन हो रहा है ऐसे में यह बात और भी प्रभावी हो जाती है कि शायद भविष्य में भी यह कार्यक्रम निरंतर जारी रहे।

ऑनलाइन शिक्षा में आने वाली रुकावटें

ऑनलाइन शिक्षा यद्यपि भविष्य में पूरी तरह से सफल हो भी जाए और भविष्य को देखते हुए इसे निरंतर जारी रखा जाना भी चाहिए लेकिन वर्तमान समय में यह प्रणाली कई एक रुकावटों एवं कठिनाइयों की वजह से पूर्णतः सफल नहीं हो पा रहा है।

 झारखंड जैसे आदिवासी बहुल राज्य में जहां डीजी साथ कार्यक्रम को पूरी तन्मयता के साथ लागू करने के लिए हर संभव कोशिश की गई है वहां भी कई तरह की रुकावटें सामने आ रही है। लगभग पिछले 6 महीने से चल रहे इस कार्यक्रम में अभी तक लगभग 10 से 1200000 बच्चों तक ही शिक्षण सामग्री पहुंच पा रही है। इनमें जो संभावित रुकावटें सामने आ रही है वह निम्न वत हैं।

  1. राज्य की अधिकतर आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है जहां आज भी मोबाइल नेटवर्क की बेहतर एवं पर्याप्त सुविधा नहीं है।
  2. अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादातर अभिभावकों के पास स्मार्टफोन नहीं है।
  3. राज्य में आज भी बड़ी संख्या ऐसे लोगों की भी है जिनके पास किसी भी प्रकार का फोन नहीं है।
  4. राज्य की आधी से अधिक आबादी मोबाइल एवं इंटरनेट की जानकारी के अभाव में इसका लाभ नहीं उठा पा रहे हैं।
  5. इस नई प्रणाली से ग्रामीण क्षेत्रों के एवं कम पढ़े लिखे गार्जियन कई तरह की परेशानियों से जूझ रहे हैं।
  6. इस पद्धति में छात्र-छात्राओं को पढ़ाई के लिए स्कूल जैसा वातावरण उपलब्ध नहीं हो पा रहा है।
  7. इस पद्धति में बच्चों में प्रतिस्पर्धा एवं उत्साह का वातावरण जैसा कुछ भी नहीं है जो बच्चों में रुचि पैदा करे।
  8. यह पद्धति व्यावहारिक शिक्षा से कोसों दूर है।
  9. इस प्रणाली में छात्र-छात्राएं अपने तक ही सीमित होते हैं एवं शिक्षकों के नियंत्रण से बाहर होते हैं।
  10. ऑनलाइन शिक्षा के इस माध्यम से बच्चों तक कोर्स से संबंधित सीमित शिक्षण सामग्री ही पहुंच पा रही है।


 निष्कर्ष
ऑनलाइन शिक्षण पद्धति यूं तो बदलते समय के साथ आवश्यक है एवं कई प्रकार से उपयोगी एवं लाभदायक साबित हो रहा है परंतु यह कुछ मामलों में पूर्ण नहीं है तथा कई प्रकार के दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। ऑनलाइन शिक्षा का यह माध्यम निसंदेह शिक्षा एवं तकनीक का मिलाजुला घटक है जो हमें शिक्षा के साथ-साथ तकनीकी रूप से भी कुशल एवं सक्षम बनाने में सहायक सिद्ध हो रहा है। यह पद्धति आने वाले समय में भारत जैसे देश में शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाने में सहायक ही नहीं अपितु मील का पत्थर साबित हो सकता है।

नोट:- यह लेखक के निजी विचार हैं।
    -:लेखक:-            
असलम आजाद शम्सी
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