नही रहे गोड्डा के कद्दावर नेता, लम्बी बीमारी के बाद छोड़ गए दुनियां

 


गोड्डा : गोड्डा ने शनिवार को एक ऐसी हस्ती को खो दिया जिसका जगह शायद ही कोई पूरा कर सके। गोड्डा के यह वह हस्ती थे जो गरीब मजदूरों की आवाज सरकार तक पहुंचाने के लिए कई बार जंतर मंतर पर भी बैठे थे। कई बार गरीब मजदूरों का आवाज बुलंद करने के लिए अनशन पर भी बैठे थे। इसी को लेकर लोग इसे गरीबो का मसीहा भी कहा करते थे। यह एक ऐसा व्यक्ति थे जिन्होंने गोड्डा की राजनीति में अच्छी पैठ बना रखी थी। 


शनिवार को बसंतराय के जिला परिषद सदस्य अब्दुल वहाब शम्स का निधन हो गया। शम्स साहब वर्षो से लम्बी बीमारी से जूझ रहे थे, और इनका इलाज चल रहा था। इधर हाल ही में काफी हद तक बीमारियों से ठीक भी हो चुके थे। बीमारियों से ठीक होने के बाद ही क्षेत्र के लोगो से लगातार मिलते जुलते रहते थे। गरीब तबके के लोगो के समस्याओं का भी समाधान करने में जुट गए थे लेकिन एकाएक दुखद खबर मिलने के बाद बसंतराय के लोगों का आँसू छलक पड़ा। उनके चाहने वालों के द्वारा सोशल मीडिया पर  भी दुख जाहिर करते हुए सभी ने श्रद्धांजलि दे रहे है। 


सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के मुताबिक उनका निधन बांका के एक अस्पताल में हुई है। तबियत बिगड़ जाने के कारण उसे अस्पताल में इलाज के लिए ले जाया गया था। जहाँ उनकी इलाज के दौरान मौत हो गयी। मौत की खबर सुनते ही उनके चाहने वालों की दिल से आह निकल पड़ी और मोहब्बत का आंसू टपक पड़ा। बहुत ही अच्छे व्यक्तित्व थे। साधारण राजनीति के इंसान थे। गंगा जमुनी तहजीब को अपने जेहन में रखते हुए हर आंदोलन में गरीबो मजदूरों का उन्होंने साथ दिया था। मजदूरों के दुख दर्द में वह हमेशा उनके साथ खड़े रहा करते थे। शम्स साहब की काबिलियत ही उनकी पहचान थी। 


बड़े खुशमिजाज इंसान थे, उसने अपना पूरा जीवनवर्ष गरीबो की भलाई में लगा दिए थे। हमको जहां तक पता है कि शम्स साहब ऐसे इंसान थे कि वह अगर खाना खाने के लिए बैठे होते थे तो उस वक्त अगर किसी ने उसे अपने समस्याओं के बारे में जानकारी दे देते तो वह खाना छोड़कर उस मजदूर भाई का सबसे पहले उनकी समस्याओं का समाधान करते थे उसके बाद ही वह खाना खाते थे। बड़ी साफ सुथरा राजनीति थी उनकी। शम्स साहब का जन्म गोड्डा जिले के बसंतराय प्रखण्ड अंतर्गत कदमा गांव में  10 दिसम्बर 1965 को हुआ था। इसके पिता जी का नाम अब्दुस सत्तार था। शम्स साहब लगभग 55 वर्ष की उम्र में इस दुनियां को अलविदा कह गए।


शम्स साहब का राजनीतिक सफर

अब्दुल वहाब शम्स साहब ने स्नातक की पढ़ाई एसपी कॉलेज दुमका से किए थे। लेकिन गरीब मजदूरों पर हो रहे अत्याचार ने उसे ऐसा प्रभावित किया कि पढ़ाई के दौरान ही छात्र राजनीति में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था और उसी समय से वो राजनीति में आ गए, पढ़ाई छोड़ कर वो सन 1986 में सक्रिय राजनीति में आये और उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) में सदस्यता ग्रहण की और गरीब मज़लूमों की आवाज़ बनने लगे थे। 34 वर्ष की इस राजनीतिक सफर में शम्स साहब को अपने जीवनकाल मे काफी उतार चढ़ाव का सामना करना पड़ा। 



कई मौक़ों पर उन्होंने क्षेत्रीय लेवल पर बड़े बड़े आंदोलन कर के सुर्खियां बटोरी थी।एक बार जब पार्टी की किसी रैली के लिए दिन भर दीवारों पर लिख लिख कर प्रचार कर के थक गए थे तो शाम को बसंतराय चौक पर नाश्ता कर रहे थे इसी बीच  बसंतराय के ही पकड़िया गांव के एक दिहाड़ी मजदूर ग़रीब भाई की साइकिल दारोगा की ही गलती से दारोगा के बुल्लेट बाइक में हल्की से टक्कर लग गयी थी। वर्दी का घमंड था तो उस मजदूर को पुलिस ने खुली सड़क पर सबके सामने उस युवक की पिटाई करनी शुरू कर दी थी। युवक पर  हो रहे अत्याचार को आसपास के लोग देखकर भी नजरअंदाज कर रहे थे। नजरअंदाज करने का एक वजह यह था कि पुलिस उनकी पिटाई कर रहा था और सब लोग तमाशा देख रहे थे।


जब  शम्स साहब को ये सब बर्दाश्त नहीं हुआ तो नाश्ता छोड़कर बसंतराय के दारोगा से भिड़ गए। शम्स साहब और दरोगा जी मे खूब नोकझोंक भी हुई थी। मामला पुलिस थाने के सामने ही हो रहा था, तो पुलिस जवान के सामने अकेले कहाँ टिक पाते। शम्स साहब को स्थानीय पुलिस ने हाजत में बंद कर दिया था। हाजत में बंद करने के बाद एकाएक कानो कान क्षेत्र के लोगों को इसकी खबर पहुंच गई। सैंकड़ो की संख्या में सभी समुदायों के लोग व इनके समर्थक थाना आ पहुंचे और पुलिस प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करना शुरू कर दिए थे। बात इतनी बढ़ गयी थी कि गोड्डा से एसपी साहब भी घटनास्थल पर पहुंचे। पूरे मामले की जानकारी एसपी साहब को दिया गया। इधर सभी लोगो द्वारा विरोध जारी था। आखिरकार एसपी साहब ने हाजत से निकाला और साथ ही तत्कालीन दरोगा कुँवर सिंह को निलंबित भी किया था। इस घटना के बाद शम्स साहब इतना प्रभावित हुए की उसने यह ठान लिया कि हमें राजनीति के क्षेत्र में ऐसा साफ सुथरा राजनीति करनी है जो एक मिशाल कायम करे। 


सीपीआई पार्टी ने एकिकृत बिहार वर्ष 2000 में गोड्डा विधानसभा क्षेत्र से विधायक प्रत्याशी के रूप में टिकट देकर चुनावी मैदान में उतार दिया। इनके चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी के बड़े बड़े नेताओं ने शिरकत की थी। अतुल कुमार से लेकर स्व. एबी वर्धन तक ने चुनावी सभा को शम्स साहब के पक्ष में  साथ दिया था। गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले इस प्रत्याशी का आर्थिक स्थिति काफी कमजोर था। लेकिन इनके चाहने वालो ने शम्स साहब को हर तरह से सहारा दिया था।  चुनाव के बाद जब मतगणना शुरू हुई थी तो अन्य पार्टी के प्रत्याशियों का खाता तक नही खुल पाया था। चुनावी रण में मौजूद सभी दिग्गज व धुरंधर प्रत्याशियों  को करीब 12 हजार वोटों से पछाड़ कर आगे चल रहे थे। लेकिन अन्य क्षेत्रों में इसकी पैठ अच्छी नही थी इसीकारण उस चुनाव में इसे हार का सामना करना पड़ गया था।


उसके कुछ दिन बाद शम्स साहब ने कांग्रेस की सदस्यता ली और बतौर गोड्डा के पूर्व सांसद फुरकान अंसारी के सांसद प्रतिनिधि बने। उसके बाद मधु कोड़ा की सरकार गठन के बाद 20सूत्री जिला उपाध्यक्ष भी रहे। फिर बाद में इन्होंने पार्टी बदल ली और 2012 में जेवीएम में शामिल हो गए। 2015 के पंचायत चुनाव में इन्होंने बसंतराय के जिला परिषद का चुनाव लड़ा और क्षेत्र की जनता के प्यार और मोहब्बत के आगे कोई टिक नही सका और जिला परिषद के सदस्य मनोनीत हुए। शम्स के पूरे जीवनकाल में जनता हित की लड़ाई लड़ने में  लगभग 18 से अधिक मुकदमे इनके ऊपर दर्ज हुए। कुछ मुकदमे में इन्हें बरी किया गया वही कुछ मामले अबतक लम्बित है। पंचायत चुनाव के एक वर्ष बाद 2016 से ही किडनी के बीमारी से ग्रसित हो गए थे। 15 वर्षो से मधुमेह के मरीज थे। पिछले एक वर्ष से शम्स साहब डायलिसिस पर थे। इलाज के सिलसिले में कोलकाता, पटना, रांची एवं दिल्ली एम्स जैसे बड़े बड़े अस्पतालों में इलाज कराते रहे और 54 वर्ष 10 महीने की उम्र में दुनियाँ को अलविदा कह गए। शम्स साहब अपने पीछे 4 पुत्र एवं 8 पुत्री को छोड़ गए है।


- ब्यूरो रिपोर्ट उजागर मीडिया।

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