राजगंज: क्या आपने कभी देखा है क्या आपने कभी सुना है अगर नहीं तो आज हम एक ऐसे गांव की कहानी बताने जा रहे हैं जहाँ पुरूष नहीं लड़कियाँ पहरेदारी करते हैं।
पुरुष प्रधान समाज में ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि महिलाएं पुरुषों पर निर्भर ना हो। लेकिन बाघमारा में ऐसी एक गांव हैं जहां पुरुष महिलाओं पर निर्भर नजर आते हैं। बाघमारा प्रखंड अंतर्गत धावाचिता पंचायत के दलदली गांव आदिवासी बहुल क्षेत्र माना जाता है।
इस गांव में लगभग 60 घरों में 600 परिवार निवास करते हैं। ऐसे भी आदिवासी गांव में साफ-सफाई का बड़ा महत्व होता है। यह गांव बरगद, नीम, पीपल के पेड़ों से चारो ओर से घिरा हुआ है।यहां ग्रामीणों का दिनचर्या अलग दिखाई देता है। गांव के समाजसेवी जीतन टुडू का कहना है कि गांव में मजदूर किस्म के लोग निवास करते हैं।
लोग यहां सुबह उठकर नीम के पतों को पानी से उबालकर कर तभी स्नान कर बाहर निकलते हैं। पूरे गांव में आक्सीजन देने वाला पेड़ लगा है जिससे हमलोगों को शुद्ध हवा मिलती है।
सरकारी गाइडलाइन का भी करते हैं अनुपालन
गांव के मुहाने पर वर्षों पुरानी पीपल की पेड़ के नीचे बने चबूतरे के करीब लगभग 10-12 युवतियां गांव के प्रवेश द्वार से आने जाने वालो पर नजर रखती है। पुछताछ के बाद ही उन्हें गांव के अंदर जाने दिया जाता है। काम से लौटकर आने वाले युवकों को गांव के प्रवेश द्वार पर सरकारी कुआं पर नहाने के बाद ही घर जाने दिया जाता है।
यहां के ग्रामीण कोरोना के पहली लहर के साथ ही सचेत हो गए थे। यहां के ग्रामीणों ने जागरूकता का परिचय देते हुए सरकारी गाइडलाइन का अनुपालन किया और सामाजिक दूरी बनाये रखने को अपनी आदत बना ली। यही वजह है कि गांव में एक भी संक्रमित नहीं पाया गया।
गांव की युवतियां पुनम टुडू, पूजा सोरेन, ज्योति मरांडी व प्रियंका टुडू ने कहा कि सोशल मीडिया के सहारे कोरोना के बारे में काफी जानकारी मिलती है। हम गांववालों को इसकी जानकारी साझा करते हैं
गांव में दिनभर सन्नाटा पसरा रहता है. ग्रामीण बताते हैं कि शनिवार को हाट करने के लिए परिवार का एक सदस्य बाजार जाता है। सभी लोग छोटी-मोटी चीजों की खरीददारी गांव में स्थित दुकानों से ही करते हैं।
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