राजनीतिक दलों के लिए तो लॉक डाउन हैं ही नही, अगर है भी तो महज गरीब जनता के लिए



हनवारा : बुधवार को हनवारा मंडल के भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा बंगाल में हो रहे हिंसा के खिलाफ में बंगाल सरकार के विरुद्ध सड़क पर उतरे हुए थे। यह उस समय प्रदर्शन की जा रही थी जब कोरोना से हमारा जिला और राज्य गम्भीर बीमारी से जूझ रहा हो।  जब कि पूरे झारखंडवासियों को इस बात का इल्म है कि राज्य में सम्पूर्ण लॉकडाउन लगा हुआ है। 

कोरोना के इस वैश्विक महामारी से लड़ने के लिए सरकार कई तरह के हथकण्डे अपना रहे है। कोविड प्रोटोकॉल के तहत सरकार द्वारा लगाए गए लॉकडाउन का गाइडलाइंस के अनुसार राज्य में किसी तरह का कोई कार्यक्रम करने पर पूर्ण रूप से पाबंदी है। सरकारी गाइडलाइंस के अनुसार एक जगह पांच व्यक्ति से अधिक लोगों का मजमा लगाना कानूनन अपराध होगा। तो गौर से देखिए इन तस्वीरों में क्या पांच से अधिक व्यक्ति नही है। 

अगर पांच व्यक्ति भी एक जगह अगर खड़ा है तो शारिरिक दूरी का अनुपालन करना अनिवार्य है। मगर क्या इन तस्वीरों में आपको शारिरिक दूरी नजर आ रही है। तो इनसे स्पष्ट हो रहा है कि कानून सिर्फ गरीब मजलूमों के लिए ही बनाया जाता है। जो कानून बनाया जाता है वह राजनीतिक दलों पर क्यों नही लागू हो पाता है। 

आखिरकार राजनीतिक दलों को कोरोना का भय नही या फिर उन्हें कानून व्यवस्था को तोड़ने का भय नही। यह सब सवाल उन गरीबो की है। जिन्हें इस लॉक डाउन ने बेबस और बेसहारा बना दिया। चंद रोटियों के लिए यह दुनियां फानी हो गयी। यह कार्यक्रम देश भर के सबसे बड़ी पार्टी मानी जाने वाली भाजपा पार्टी का है। 

जो हनवारा मंडल अध्यक्ष दिनेश सिंह की अगुवाई में निकाली गई थी। उनके साथ मे भाजपा हनवारा मंडल के महामंत्री प्रमोद साह, राकेश बिहारी, संजय संगम एवं सुबोध यादव सहित आधा दर्जन से अधिक भाजपा समर्थक कार्यक्रम में शामिल हुए। न तो शारिरिक दूरी का ख्याल रखा गया और न ही लॉक डाउन को मद्देनजर रखा गया। 

आपको यकीन नही होगा यही कार्यक्रम के बजाय अगर गरीब मजदूर चंद रोटियों के लिए भीड़ जमा करते तो पता नही पुलिस प्रशासन से कितनी लाठियां खानी पड़ती। बहरहाल इन राजनीतिक दलों द्वारा प्रशासनिक अधिकारियों से अनुमति प्राप्त कार्यक्रम है या नहीं यह तो सक्षम पदाधिकारी ही बता सकते है। लेकिन इंसानियत के खातिर इस विपरीत परिस्थितियों में क्या इस तरह के कार्यक्रम जरूरी है। 

सवाल तो कई तरह के खड़े होते हैं शपथ लेने के पूर्व बंगाल की विधि व्यवस्था तो चुनाव आयोग और राज्यपाल के हाथ मे थी, जो सीधे केंद्र सरकार के नियंत्रण में है। ऐसे में 2 और 3 मई की हिंसा के लिए ममता कैसे दोषी हुई? ममता बनर्जी ने तो बीते बुधवार को शपथ ली, जीती हुई पार्टी क्यों हिंसा करेगी? दिल्ली में भी चुनाव के बाद ऐसी ही हिंसा की गई थी। 

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